आसानी से नहीं होती डीएनए जांच
फरीदाबाद। सड़ी गली हालत में मिले या अज्ञात शव की पहचान करवाने के लिए पुलिस केवल खानापूर्ति करके 72 घंटे बाद उसका अंतिम संस्कार कर देती है। अंतिम संस्कार होने के बाद यदि कोई शव को कपड़े से पहचानने के बाद उसका डीएनए टेस्ट करवाना चाहे तो पुलिस आनाकानी करने लगती है। पहले तो पुलिस ही डीएनए सैंपल जांच के लिए नहीं भेजती और यदि जांच के लिए चला गया तो मधुबन, करनाल स्थित फोरेंसिक लैब से उसकी रिपोर्ट आसानी से नहीं आती है। डीएनए जांच के लिए मधुबन में पूरे प्रदेश की एकमात्र लैब है, जिस पर 22 जिलों का भार है।
प्रदेश में विसरा जांच के लिए क्षेत्रीय प्रयोगशालाएं बनाई गई हैं, मगर डीएनए जांच के लिए एक मात्र मधुबन लैब है। ऐसे में वहां प्रदेश के सभी 22 जिलों से डीएनए सैंपल जांच के लिए भेजे जाते हैं। एक लैब पर 22 जिलों का भार होने के कारण रिपोर्ट में देरी से मिल पाती है, जिससे जांच प्रभावित होती है। इस कारण अक्सर पुलिसकर्मी झंझटों से बचने के लिए डीएनए सैंपल को जांच के लिए भेजने में आनाकानी करते हैं।
आगरा नहर में मिले ललित रावत के शव का मामला इसकी बानगी है। रावत दिसंबर 2017 में लापता हो गए थे और जून 2018 में उनका शव आगरा नहर में कार समेत बरामद हुआ था। पहले तो पुलिस ने उनकी डीएनए जांच करवाने में कोई रुचि ही नहीं दिखाई। उनकी पत्नी अंजली रावत के बार-बार कहने पर ललित का डीएनए सैंपल जांच के लिए मधुबन भेजा गया, मगर आज तक उसकी रिपोर्ट नहीं आ पाई है।
सैंपल रखने के लिए नहीं है अनुकूल जगह
विशेषज्ञों के अनुसार विसरा या डीएनए सैंपल माइनस 4 डिग्री तापमान में रखे जाने चाहिए, मगर बीके सिविल अस्पताल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। गर्मी हो या सर्दी सैंपल लेने के बाद उसे पोस्टमार्टम हाउस के ही एक कमरे पर रख दिया जाता है। ऐसे में बहुत से सैंपल लैब में पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं, जिस कारण सटीक रिपोर्ट नहीं आ पाती है।
विसरा या डीएनए रिपोर्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट बहुत सख्त है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सभी जिला अदालतों से पोक्सो एक्ट से संबंधित मामलों में रिपोर्ट मांगी थी कि कब उस मामले में विसरा पुलिस ने जांच के लिए भेजा, कब उसकी रिपोर्ट आई। इसका उद्देश्य यह है रिपोर्ट में देरी के कारण अदालतों में चल रहे मामले लंबे न खिंचे और पीड़ित को जल्द न्याय मिल सके।